Selfish, ये वो शब्द है जिसे सुनकर ही दिल को न जाने क्या हो जाता है | जो अपना होता है वो भी एक अजनबी सा महसूस होने लगता है | और जहाँ तक मैंने जाना है ये पुरी दुनिया इसी मतलब से चलती है , ये कहने में बुरा भले ही लगे पर सच है एक कठोर सच |
मैे न तो लेखक हु और न ही कोई इस दुनिया का अलग इंसान जो selfish नहीं है ,
पर जितना मई समझ पाया selfissh भी दो तरह के होते है , एक वो जिनके लिए सिर्फ़ और सिर्फ अपनी खुशी ही सबब कुछ है चाहे उसके लिए उसको कितने को भी रुलाना पड़े | और एक वो जो अपनी खुशी के साथ -साथ दुसरो के लिए भी सोचते है |
आप खुद सोचे अगर हमें रोड पर किसी के जेब से १०० रूपये गिरता देखे और उस आदमी को बता दे की ये आपका पैसा गिर गया आप ले लो , और उस आदमी के चहरे की वो हसी , उसके दिल से निकली वो दुआ , और शायद ये आपका एक छोटा सा कदम उसकी ये सोच भी बदल दे की अभी भी ईमानदारी है | सच मानो तो हर आदमी ईमानदार बनना चाहता है पर वो तो यही सोचता है मेरे अकेले से क्या होगा ?
पर ये आपको कहा पता की उसके लिए ये १०० रूपये क्या मायने रखते है , हमारी एक बहुत बड़ी कमी यही है की हम किसी के दर्द का सिर्फ अंदाजा लगा सकते है पर सच ये है कि किसी का दर्द कोई समझ ले तो इस दुनिया में कोई किसी को दर्द नहीं दे पायेगा | वास्तव में हम है तो इंसान सिर्फ हमारी सोच बदल गयी है हम खुद के लिए ही जीना चाहते है भगवान के नाम पर लाखो दान दे सकते है और किसी भिखारी को देख कर हमें उसकी मदद करने में भी शर्म आती है क्यों ? हम ऐसे क्यों बन चुके है ?
उस भवन को कभी पैसे की आवश्कता होगी जो आपको सब कुछ देता है आप उस भगवान के दर्शन के लिए पुजारी को पैसे देते है क्या भगवान ये नहीं देखता ? हम सब कुछ जानते है पर सोचते यही है जो हो रहा है होने दो हमरा क्या है ? ये आप इसलिए सोच रहे है की आप अभी जिन्दा है और आपका बेटा अभी छोटा है जो आप सोच रहे है वो भी यही सोचेगा ये सच है और वो भी सिर्फ अपने लिए ही जयेगा |
अभी भी वक़्त है एक हफ्ते में ही एक काम जो भगवान की ख़ुशी के लिए करते है किसी इंसान की ख़ुशी के लिए करे वो भगवान वो आपके इस काम से भी खुश होगा |
मैे न तो लेखक हु और न ही कोई इस दुनिया का अलग इंसान जो selfish नहीं है ,
पर जितना मई समझ पाया selfissh भी दो तरह के होते है , एक वो जिनके लिए सिर्फ़ और सिर्फ अपनी खुशी ही सबब कुछ है चाहे उसके लिए उसको कितने को भी रुलाना पड़े | और एक वो जो अपनी खुशी के साथ -साथ दुसरो के लिए भी सोचते है |
आप खुद सोचे अगर हमें रोड पर किसी के जेब से १०० रूपये गिरता देखे और उस आदमी को बता दे की ये आपका पैसा गिर गया आप ले लो , और उस आदमी के चहरे की वो हसी , उसके दिल से निकली वो दुआ , और शायद ये आपका एक छोटा सा कदम उसकी ये सोच भी बदल दे की अभी भी ईमानदारी है | सच मानो तो हर आदमी ईमानदार बनना चाहता है पर वो तो यही सोचता है मेरे अकेले से क्या होगा ?
पर ये आपको कहा पता की उसके लिए ये १०० रूपये क्या मायने रखते है , हमारी एक बहुत बड़ी कमी यही है की हम किसी के दर्द का सिर्फ अंदाजा लगा सकते है पर सच ये है कि किसी का दर्द कोई समझ ले तो इस दुनिया में कोई किसी को दर्द नहीं दे पायेगा | वास्तव में हम है तो इंसान सिर्फ हमारी सोच बदल गयी है हम खुद के लिए ही जीना चाहते है भगवान के नाम पर लाखो दान दे सकते है और किसी भिखारी को देख कर हमें उसकी मदद करने में भी शर्म आती है क्यों ? हम ऐसे क्यों बन चुके है ?
उस भवन को कभी पैसे की आवश्कता होगी जो आपको सब कुछ देता है आप उस भगवान के दर्शन के लिए पुजारी को पैसे देते है क्या भगवान ये नहीं देखता ? हम सब कुछ जानते है पर सोचते यही है जो हो रहा है होने दो हमरा क्या है ? ये आप इसलिए सोच रहे है की आप अभी जिन्दा है और आपका बेटा अभी छोटा है जो आप सोच रहे है वो भी यही सोचेगा ये सच है और वो भी सिर्फ अपने लिए ही जयेगा |
अभी भी वक़्त है एक हफ्ते में ही एक काम जो भगवान की ख़ुशी के लिए करते है किसी इंसान की ख़ुशी के लिए करे वो भगवान वो आपके इस काम से भी खुश होगा |
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